समाज को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं मूल्यों में गिरावट

11:40 PM / Posted by SHIV SHAMBU /

मां तो मां, दर्शकों को भी रूला गया मारिया का सच।
काश यह झूठ हो, ऐसा नहीं होना चाहिए। क्या ऐसा हो सकता है, यह सवाल हर दर्शक के जेहन में था। रिश्ते की मर्यादा क्या इतनी भी नहीं। या यह पश्चिम की समस्या है। ... नहीं हमारे यहां भी तो ऐसा ही हो जाता है। क्यों, पता नहीं। मां और बेटी दोनों एक से प्रेम करती हैं। पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगा नाटक मारिया कुछ जगह दर्शकों को विचलित करता नजर आया। डीएवी गल्र्स कालेज में नाटक उत्सव के दौरान जकिया जुबैरी की कहानी ‘मारिया’ का मंचन किया गया। नाटक का निर्देशन इंद्र राज इंदू ने किया। अविवाहित रिश्ता और इससे पैदा हुआ बच्चा। समाज की चिंता हमें ही नहीं उन्हें भी है। वे भी डरते हैं। हमारे यहां ही अविवाहित मां बच्चे को लावारिश छोडऩे के लिए अभिशप्त नहीं है, वहां भी है। यहीं इस नाटक का सार है। अविवाहित मां अपनी बेटी को लावारिश छोड़ देती है। बरसों साथ गुजार दिए सिर्फ इस अहसास के साथ कि कल क्या होगा। जो वो चाहती थी वह नहीं मिला। पे्रमी भी छोड़ कर चला गया। तब जब उसे अपने प्यार के सहारे की जरुरत होती है। कहानी घूम जाती है। मां को बेटी मिलती है जो गर्भवती है। मां अपनी बेटी से पूछती है कि तुमने इतनी बड़ी कुर्बानी किसके लिए दी बेटी। बेटी के मुंह से निकला हुआ संवाद कि मां जिसके पास तुम जाती थी। कहानी घूम जाती है। मां को बेटी मिलती है जो गर्भवती है। मां अपनी बेटी से पूछती है कि तुमने इतनी बड़ी कुर्बानी किसके लिए दी बेटी। बेटी के मुंह से निकला हुआ संवाद कि मां जिसके पास तुम जाती थी। यह संवाद सुनकर दर्शकों को एक ऐसे सच का सामना करना पड़ता है कि शर्म से सिर झुक जाता है।

हम भी पश्चिम में आ गए : कहानी क्योंकि पश्चिम परिवेश की है। ऐसे में पात्रों की ड्रेस भी वहां के अनुरुप थी। सबसे बड़ी बात तो यह रही कि पात्रों की भावभंगिमाएं भी पूरी तरह से पाश्चात्य रंग में रंगी हुई थीं। यहीं वजह रही कि वे अपनी बात को बहुत ही करीने से कह गए।
हमारी भी समस्या है : नाटक के निदेशक इंद्रराज इंदू ने बताया कि मारिया नाटक आज के समय में बहुत प्रासंगिक है। हम रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे बहुत सारे उदाहरण हमारे सामने हैं। समाज में खुलापन आ रहा है। इसके साथ ही इस तरह की दिक्कत भी आएगी। इससे बच नहीं सकते।
जाकिया जुबैरी एक परिचय : पाकिस्‍तान मूल की जाकिया जुबैरी लंबे समय से इंग्‍लैंड में रह रही है। वह वहां की राजनीति में सक्रिय है। हिंदी से जुड़ी जाकिया जुबैरी पश्चिम में भी मूल्‍य तलाशती हैं। उनका कहना है कि मूल्‍यों की गिरावट किसी एक समाज की समस्‍या नहीं, हर समाज की दिक्‍कत है

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2 comments:

Comment by ePandit on July 16, 2011 at 11:55 PM

नाटक की सफलता कहानी तथा कलाकारों के स्वाभाविक अभिनय पर निर्भर करती है। आपके वर्णन के अनुसार मारिया कुछ ऐसा ही रहा।

Comment by Dudhwa Live on September 4, 2011 at 3:43 PM

सुन्दर लेखन बन्धु

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