विज के ट्वीट यानि जंग की जुगाली

9:24 AM / Posted by SHIV SHAMBU / comments (0)



विज ट्वीट कर रहे है  भासा ऐसी की दो मतलब निकल लो किया वे मनो की तारीफ कर रहे या कॉमेंट लकिन विज लगातार ट्वीट कर रहे है सरकार परेसान है मेने विज के कुछ ट्वीट का पोस्टमार्टम किया पाया विज तारीफ नही कर रहे  लकिन बड़ा सवाल किया विज खुद ठीक है किया इन 100 दिन में उन्होंने कोई असा बड़ा काम कर दिया जिसकी तारीफ होने चाहिए लगता नही दो डिपार्टमेंट की बात करता हु हेल्थ ओर खेल दोनों में विज खास नही कर पाये स्पोर्ट नीति छोड़ दे बस हेल्थ में सबसे बुरा हाल है म खुद कई हॉस्पिटल में गया कोई बदलाव नही हुआ कियोकि विज ने इस तरफ धियान नही दिया कुछ काम ऎसे है जो लोकल लेवल पैर निपट सकते है लकिन पहल नही हुई कोई दवा नही मरीज तंग है विज को चिंता नही एम्बुलेंस ठीक काम नही कर रही विज यदि करते तो लोकल लोगो से मिल कर कोई रास्ता निकल सकते थे वे उद्योगपतियों से चंदा लाकेर सरकारी हॉस्पिटल में कुछ दवा का परबंद कर सकते थे

अपनी बात  भूल गए विज

अम्बाला कैंट में आउटर में  रोड की पास कुस्ट आश्रम है इस के सामने शहर का कचरा डाला जा रहा है विज ने हुड्डा सरकार में सदन में यह मुद्दा उठाया था बहुत मार्मिक सब्द प्रयोग किय लकिन अब्ब हेल्त मिनिस्टर है उन बेकारों की लिए अबे तक कुछ नही हुआ

वंदना मामले में मुह की खाई

मुद्दा है गलत था मंत्री की गलती थे विज ने गलत स्टैंड लिया हो सकता है वंदना ने कही अओउर गलती की है लकिन इसका यह मतलब नही की किसी गक्ति की सजा इस तरह दी जाये करनाल की पंजाबी बिरादरी का बड़ा वर्ग वंदना की साथ है विज को पीछे हटना पड़ा  तुर्रा दिया अफसर सुनते नही

दिकत कहा है
विज अड़ जाते है इस वजह से कई बार डिक्टेटर जैसे लग ते है ईमानदार है इसमें सक नही यह अच्छी बात है लेकिन यह भी सही है की बाकि सारे बईमान नही है आप यदि काम में यकीं करते है तो किसी  से भी काम करा सकते है लीडर में यह बात  तो होनी  चाहिए की वे किसी से भी काम करा ले फिर दिकत किया है

अओउर अंत में
महाभारत न होता यदि गुरु द्रोण राजा की प्रति अंध भक्त न होते सही को सही कहते और गलत को गलत द्रोपती को दरबार में जब दुशासन उसका चीर हरण कर रहा था टब  द्रोपती न गुरु द्रोण से मदद की गुहार की लकिन गुरु का जवाब था वे सत्ता की साथ है कुछ नही कर सकते

चचा खट्‌टर भी अपन को हुड्‌डा की तरह अकेले नजर आए

6:21 AM / Posted by SHIV SHAMBU / comments (0)


आज सरकार के 100 दिन पूरे हो रहे हैं। चचा खट्टर की सत्ता के सौ दिन हो और प्रशासन उत्साहित न हो, ऐसा होता नहीं। आज पत्रकारवार्ता रखी गई। हम रात भर इस चिंता में कहीं सुबह कैंसिल ही न हो जाए। जब पहुंचे तो देखा चचा आ गए। बतीया तो रहे। लेकिन यह क्या, चचा तो अकेले। ठीक वैसे ही जैसे अपने हुड्‌डा अकेले ही होते थे। कोई मंत्री उनके साथ नहीं होता था। आज खट्‌टर भी ठीक वैसे ही अकेले, बस प्रशासनिक अमले में धिरे बैठे थे। ह़ड्‌डा जैसे केंद्रीय नेतृृत्व की कृपा से दो प्लान सीएम रहे। हमें लगा कि ठीक खट्‌टर चचा भी केंद्र की कृपा से सीएम है। पार्टी उनके साथ नहीं। कोई मंत्री नहीं। कोई विधायक नहीं। लगा कि खट्‌टर न भाजपा के सीएम न प्रदेश के। वें तो मोदी के सीएम है। ठीक वैसे ही जैसे हुड्‌डा सोनिया के सीएम होते थे। कम से कम सौ दिन पूरे होने पर किसी एक मंत्री को चचा यदि साथ जोड़ लेते तो हमें अच्छा लगता।
तैयारी में बहुत कमी थी सीएम के
सीएम आए, हाथ में लिए पर्चे को बांचना शुरू किया। एक बार शुरू हुए तो तो रुकने का नाम नहीं लिया। पूरा पढ़ा और फिर नजर उठाई। कोई सवाल। तभी एक साथी ने पूछ लिया, वैट के दस हजार करोंड रुपए की रिकवरी होगी क्या? सीएम के पास जवाब ही नही। सीएम को पता ही नहीं था, ऐसा कोई कांड भी हुआ है। सवाल पर क्या जवाब दे। बस गर्दन इधर उधर घुमाई। तभी चीफ सेक्रेटरी ने कान में फुसफूुसाया। सीएम की समझ में कुछ मामला आया। तब पत्रकारों को बताया कि अभी एसआईटी की रिपोर्ट नहीं मिली। तभी एक साथी ने कहा लोकायुक्त के पास है रिपोर्ट। पर सीएम जवाब नहीं दे पाए। बस इधर उधर देखते रहे। लगा कि सौ दिन तो पूरे हो गए। लेकिन सीएम होमवर्क करके नहीं आए। मुझे आज हुड्‌डा की कमी खल रही थी। सोच रहा था कि इससे तो हुड्‌डा ही अच्छा था। बंदा झूठ तो बोल देता था। लेकिन ये जनाब तो कुछ बोल ही नहीं पाते।
कांग्रेस के काम खुद के बताए
हमारी सोच थी चचा खट्टर संघी है। सच सच बोलेंगे। लेकिन सत्ता में सच्च की गुजाइंश नहीं होती। यह बात आज अपनी समझ में आई। चचा खट्‌टर जितनी भी बड़ी बड़ी उपलब्धि अपने खाते में गिनवार रहे थे, वे भी कांग्रेस के सयय की थी। बस एक सीएम विंडों को छोड़ दे तो। इस सरकार ने 100 दिन में कुछ नहीं किया। सिर्फ लफ्फाजी के।
हकीकत से दूर खट्‌टर सरकार
सरकार हकीकत से बहुत दूर है। प्रदेश में आज भी भ्रष्टाचर है। लोगों के काम नहीं हो रहे हैं। यूरिया खाद किसानों को मिल नही रहा है। आम आदमी को इंसाफ नहीं मिला। मिस्टर खट्टर दावा ठोकर हे, हमने सब ठीककर दिया। वह भी 100 दिन मे। सरकार ने हुई टवंटी टवंटी की टीम हो गई। खट्‌टर थोड़ा बाहर निकल कर देखा। हकीकत पता चल जाएगी।
क्या वास्वत में काम हुए हैं
नहीं, कुछ नहीं हुआ। खट्टर सरकार 100 दिन में ऐसा कुछ नहीं कर पाई जिसमें उनका विजन नजर आए। प्रदेश बुरी तरह से विकास में पिछड़ा हुआ है। उद्योग के लिए सरकार की कोई नीति नहीं। शिक्षा को लेकर कुछ नहीं बस एक ही रटा लगाए हुए हैं। हम तो गीता पढ़ाएंगे। गोया कि गीता पढ़ा कर इंजीनियर तैयार करेंगे। हुआ यह है कि खट्‌टर के मंत्री मंत्री अधिकारियों को गरिया जरूर रहे हैं। विज ने पहले नीतिन से पंगा लिया। कई अन्य अधिकारियों को भी लताड़ चके हैं। कृष्ण बेदी ने डाक्अर वंदना को सरेआम भला बुरा कहा। जिस सरकार में अधिकारी ही खुश नहीं जनता कैसे खुश हो सकती है? हिसार में लोगों को पीने के पानी नहीं मिल रहा है। रजिस्ट्रियों पर अधिकारयों ने सीएम को झूठ बोल दिया। जीरो एफआईआर की बात हो रही है, हमने पांच पुलिस स्टेशन में जांच की। कहीं भी जीरो एफअाईआर दर्ज नहीं हुई।
और अंत में
भजन लाल जी विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वायदे कर रहे है। हमारी सरकार आई तो चंडीगढ़ हरियाणा का होता। एसवाइएल का पानी लाएंगे। नौकरी देंगे। किसानों के कर्ज माफ करेंगे। आदि आदि। जम कर वायदे हुए । जनता ने खूब ताली बजाई। वोट भी दी। भजन लाल जी की सरकार बन गई।
बनते ही उन्होंने एक भी वायदा पूरा नहीं। उन्हें उनके वायदे याद कराए तो बोले, ब्याह के सारे गीत सच्चे नहीं होते। मतलब। भाई वोट लेना है, झूठ तो बोलना पड़ेगा। यदि सच सच बात बाेलता तो मुझे मिल जाती वोट और बन बा जाती मेरी सरकार।
हमें भजन लाल जी की बात तभी समझ में नहीं आई थी। लेकिन अब समझ में आने लगी है। सत्ता के लिए नेता कुछ भी कर सकता है। झूठ बोलना तो सियासत का पहला पाठ है। बस फर्क यह है कि भजन लाल जी स्वीकार कर लेते है आैर भाजपा वाले स्वीकार नहीं कर रहे।

क्या जल जंगल जमीन कार्पोरेट की भेट चढ़ेंगे ?

1:57 AM / Posted by SHIV SHAMBU / comments (0)



काले अध्यादेशों, प्राकृतिक संपदाओं की कम्पनी लूट की खुली छूट और जन-प्रतिरोध  राष्ट्रीय अधिवेशन
 सन् 2014 के आखिरी हफ्ते में मौजूदा मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए एक अध्यादेश जारी किया। इस अध्यादेश के जरिए से सरकार और कम्पनीयों द्वारा भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया और आसान हो जाएगी। क्योंकि इस अध्यादेश में सन् 2013 में बने हुए संशोधित भूमि अधिग्रहण कानून में जो थोडे़ बहुत जनपक्षीय प्रावधान थे, उसे भी खत्म कर दिया गया और साथ ही साथ 13 अन्य कानूनों जैसे वनाधिकार कानून 2006, वन संरक्षण कानून आदि के प्रावधानों को भी अध्यादेश के अन्तर्गत कर लिया गया, जिससे इन कानूनों में लोगों के लिए जो अधिकार सुरक्षित रखे गये थे उसे भी निष्प्रभावी कर दिया गया, यानि के सरकार व कम्पनी द्वारा व्यक्तिगत और सार्वजनिक ज़मीनों का जो अधिग्रहण/अतिक्रमण होगा उसके खिलाफ कोई कानूनी प्रक्रिया अब नहीं होगी। सरकार ने एक झटके में जल,जंगल,ज़मीन व खनिज पर लोगों के जो भी सीमित अधिकार सुनिश्चत थे उसे भी खत्म कर दिये।

मोदी सरकार ने जो जनविरोधी कदम उठाये है वो सरासर संविधान विरोधी हैं। भारतीय संविधान में अनु0 39बी में प्राकृतिक संपदाओं पर नागरिकों के बुनियादी अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए जो प्रावधान हैं यह अध्यादेश उन प्रावधानों को खारिज करता है। कोई भी निर्वाचित सरकार न्यायोचित ढ़ग से ऐसा कृत्य नहीं कर सकती है, ऐसा अध्यादेश केवल विशेष परिस्थिति में या आपातकालीन स्थिति में ही जारी होता है। सरकार ने न तो संसद में और न जनता के सामने ऐसा कोई कारण दर्शाया है, तो फिर ऐसे अध्यादेश की ज़रूरत क्यों पडी़ ? यह सच्चाई देश की जनता के सामने लाना जरूरी है। और तो और मोदी सरकार ने इन्ही दिनों में संसदीय प्रक्रिया का उल्लंघन करके कई काले अध्यादेश जारी किए। 

संसद का शीतकालीन अधिवेशन 23 दिसम्बर 2014 को खत्म हुआ, जिसमें इन विषयों पर संसद में बहस चल रही थी। लेकिन धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर सरकार की हटधर्मितापूर्ण रवैए के कारण बार-बार संसद का सत्र बाधित होता रहा और जिसके कारण भूमि अधिग्रहण कानून के संशोधनों पर दोनों सदनों में विस्तृत चर्चा पूरी नहीं हो पायी थी। ऐसी परिस्थिति में सरकार को अगले सत्र के लिए इंतज़ार करना चाहिए था जो कि 2 महीने बाद बजट सत्र शुरू होना है। बजट सत्र संसद के सबसे लम्बा सत्र होता है जो लगभग 3 महीने चलता है। जिसमें इन संवेदनशील मुद्दों पर पूरी बहस हो सकती है। 

लेकिन सरकार ने शीतकालीन सत्र खत्म होने के एक हफ्ते के अन्दर ही इन काले अध्यादेशों को जारी किया। यह संसदीय प्रणाली की घोर अवमानना है, जिससे देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था कमजोर होती नज़र आ रही हैं। एक तरह से इन अध्यादेशों से सरकार जानबूझ कर एक राजनैतिक अराजकता की स्थिति पैदा कर रही हंै, और जनता का ध्यान मूल समस्याओं जैसे महंगाई, बेरोजगारी, भू-अधिकार, भ्रष्टाचार से हटाने की साजि़श कर रही है।

इन परिस्थितियों से देश के करोडो़ं आम नागरिक, प्रगतिशील समाज, न्यायविदों और विपक्षी राजनैतिक दलों में हड़कम्प मच गया, सभी के लिए एक ही चिन्ता का विषय है कि मोदी सरकार के शासनकाल में केवल 7 महीने के अन्दर ही देश के संवैधानिक ढ़ाचे पर शासक दल का आक्रमण शुरू हो गया है और इसके चलते हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था अब खतरे में पड़ गयी है। 

भारत एक बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक और बहुवर्गीय राष्ट्र है और शासकीय स्तर पर एक बहुराज्यीय संघ है। भारतीय संविधान इन विविधता और बहुलता को एकताबद्ध रखने का एक बुनियादी आधार हैं, यह महज़ एक दस्तावेज़ नहीं हैं, बल्कि लाखों करोडो़ं देशवासियों को एक जुट रखकर एक सशक्त राष्ट्रनिर्माण की प्राण है। अतः भारतीय संवैधानिक ढ़ाचे की छेड़खानी और इसकी अवमानना राष्ट्रहित के खिलाफ है। दरअसल मोदी सरकार प्रजातांत्रिक राष्ट्र व्यवस्था जिसमें सभी नागरिकों की सुरक्षा निहित है, उसे तोड़कर एक ऐसी व्यवस्था कायम करना चाहते है, जिसमें सिर्फ देशी और विदेशी कम्पनीयों (कारपोरेट) के निहित स्वार्थों की पूर्ति की जाएगी, साथ ही साथ इन कम्पनीयों के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक तावेदार फलेंगे-फूलेंगे और आम जनता बेहाल।  कम्पनीयों के दबाव के चलते मोदी सरकार को जल्द से जल्द यह काम पूरा करना है और इसीलिए देशी-विदेशी बड़ी कम्पनीयों की आवभगत देश-विदेश में जोरो-शोरो से चल रही हैं। 


इस तरह से भारतीय गणराज्य फिर से गुलामी के दौर में पंहुच जायेगा। इन काले अध्यादेशों को जारी करके मोदी सरकार ने अपनी मंशा को साफ कर दिया, और अब मौजूदा सरकार के चरित्र के बारे में कोई भ्रम की गुंजाईश नहीं हैं। भले ही इस सरकार ने अपने चुनावी वादों में आम लोगों को अच्छे दिन लाने के बड़े-बडे़ सपने दिखाये थे, अब केवल पूंजीपतियों और इजा़रेदारों के लिए ही अच्छे दिन आएगें। अब कम्पनीयों को देश की प्राकृतिक संपदाओं को लूटने की खुली छूट मिलेगी और विकास के नाम पर बडे़-बडे़ कर्ज मुहैया कराये जायेंगे जिसका सारा बोझ आम जनता के कन्धों पर होगा और इनका हाल बदतर से बदतर होता जाएगा।

देश के तमाम मेहनतकश किसान, मज़दूर, कर्मचारी, लघुउद्यमी, छोटे व्यापारी, दस्तकारों, मछुवारे, रेहडी़ व पटरी वाले और इसके सर्मथक प्रगतिशील तबकों के लिए यह एक अति चुनौतीपूर्ण दौर हैं। अब शासकीय कुचक्र के खिलाफ संघर्ष के अलावा कोई और विकल्प नहीं है, बीच-बचाव करने का अब कोई सुराग भी नहीं बचा। इस जनविरोधी व्यवस्था के खिलाफ एक निर्णायक जनसंघर्ष ही एक मात्र विकल्प है। जिसमें तमाम शोषित, पीडि़त और प्रगतिशील शक्तियां एकजुट होकर एक नई राजनैतिक प्रक्रिया को जन्म देंगे। ऐसी प्रक्रिया जो लोकहितकारी और जनपक्षीय व्यवस्था की स्थापना करेगी। आज तमाम विरोधी पार्टियां भी जो ज्यादात्तर अब तक उदारीकरण नीति को ही अनुसरण कर रही थी, उनके अस्तित्वों में भी खतरा पैदा हो गया और वे भी अब एकजुट होने की कोशिश कर रहे है और जनसंघर्ष के साथ भी संवाद कर रहे है।

 हालांकि ये निश्चित नहीं है कि राजनैतिक दलों में से कितने दल लंबे समय तक जनसंघर्ष के साथ में चलेंगे लेकिन फिर भी एक उम्मीद तो जागी कि कुछ दिन तक ये संवाद तो जारी रहेंगे और मज़बूत भी होगे, वक्त का तकाज़ा भी यही हैं। जनसंघर्षों के लंबे समय से जुडे़ हुए संगठनों ऐसी परिस्थिति में स्वाभाविक रूप से करीब आ रहे हैं, और सामुहिक चर्चा की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अलग-अलग जगहों में अलग-अलग तरीके से अपनी मांगों को लेकर प्रक्रियाएं चल रही हैं। इन अलग-अलग प्रक्रियाओं को एक साॅझा मंच में समाहित होना हैं, ताकि अपनी संघर्षों और विचारों को और मजबूत करें। अलग-अलग रहकर अब लम्बे समय तक संघर्ष को जारी रखना सम्भव नहीं है। फिलहाल सबके लिए सबसे अहम मुद्दा इन काले अध्यादेशों को खत्म करना है। इस जनविरोधी व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए यह पहली कड़ी है।


इसी संदर्भ में कुछ प्रमुख जनसंगठनों ने मिलकर दिल्ली में 23-24 जनवरी 2015 को एक  दो दिवसीय् राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित करना तय किया हैं। हालांकि वर्तमान परिस्थिति के दबाव के चलते और जरूरत को देखते हुए यह सम्मेलन जल्दी में आयोजित किया जा रहा है। लेकिन कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा प्रमुख जनसंगठनों के प्रतिनिधिगण इसमें शामिल रहें, ताकि कुछ रणनीतिक और फौरी फैंसले लिए जा सके और आगे बढ़ सकें। निश्चित रूप से यह प्रयास यही खत्म नहीं होगा बल्कि राज्य व क्षेत्रों में ऐसे अधिवेशन/सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा। ताकि एक निश्चित समय में सभी आन्दोलनकारी संगठन सामुहिक रूप से एक राष्ट्रीय जनान्दोलन खडा़ कर सकेगें ऐसा जनान्दोलन जो इस जनविरोधी व्यवस्था को चुनौती दे सकें।
इतिहास गवाह है कि भारत में पिछले 250 वर्षों में औपनिवेशिक काल में तथा आजा़द भारत में भी बार-बार ऐसे जनान्दोलन की रचना हुई और शासक वर्ग को धवस्त भी किया गया, लेकिन यह भी सच्चाई है कि हर बार जो भी नई व्यवस्था आयी वो भी लोगों को शोषण मुक्त नहीं कर पायी और ऐतिहासिक अन्याय जारी रहा। क्योंकि सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ जनसंघर्ष और प्रगतिशील राजनैतिक शक्तियां विघटीत होती गयी और सत्ताधारियों को अन्यायपूर्ण व्यवस्था को चलाने की छूट मिलती चली गयी। इस बार जनसंघर्षकारी संगठनों को और भी जागरूक होकर संगठित संघर्ष को चलाना होगा ताकि जनसंघर्ष अपनी मंजिल तक पंहुच सके। 

दुधिया लाइव के साभार से

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12:39 AM / Posted by SHIV SHAMBU / comments (0)

n the ongoing case of bullying-turned-racketeering that morphed into exchange of “protection money” and favours from about 150 students of the four elite private schools in the city by three youths, the police have started recording statements of the students.

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