उत्तर प्रदेश सरकार, क्रिकेट मैच की तरह, महाकुंभ मेले के दौरान विज्ञापन और टेलीकास्ट राइट्स की नीलामी कर के धन कमाना चाहती है.
लेकिन जानकार लोगों का कहना है कि सदियों पुराने इस धार्मिक और सांस्कृतिक महोत्सव में इस तरह का नया प्रयोग काफी विवादास्पद हो सकता है.
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जानकारी के मुताबिक वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने पत्र लिखकर सरकार के निर्देश का विरोध किया है.
इन अधिकारियों का कहना है कि अगर प्रसारण अधिकार को नीलाम करके किसी एक चैनल को दिया जाएगा तो इस तरह के एकाधिकार का साधु संत भी विरोध करेंगे जिससे बेवजह का सिरदर्द होगा.
अधिकारियों का ये भी कहना है कि फिर वो चैनल मुनाफा कमाने के लिए क्या क्या दिखाएगा इस पर नियंत्रण करना मुश्किल हो जाएगा और अगर लोगों की धार्मिक भावनाऐँ आहत हुईं तो इतने बड़े मेले में शांति व्यवस्था की समस्या हो जाएगी.अधिकारियों ने ये भी कहा है कि ऐसा करना कानूनी दृष्टि से भी उचित नहीं होगा क्योंकि कुंभ मेला प्रशासन की संपत्ति नहीं है.
इस बीच इलाहाबाद के प्रमुख महंत आनंद गिरी ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है.
उनका कहना है कि सरकार मेले में तीर्थ यात्रियों और साधु संतों की सेवा तो कर सकती है लेकिन मेले पर अधिकार नहीं जता सकती क्योंकि ये मेला अखाड़ों का है, सरकार का नहीं है.
बड़ा आयोजन
कुंभ मेला
* मेला अगले वर्ष जनवरी में शुरू होकर मार्च तक चलेगा
* देश-विदेश से करीब तीन चार करोड़ लोगों के आने की संभावना
* भारत सरकार की ओर से एक हजार करोड़ रूपए का अनुदान
इलाहाबाद विश्वविद्याल के प्राध्यपक प्रोफेसर धनंजय चोपड़ा 2001 तक मेले का कवरेज करते रहे हैं और एक पुस्तक भी लिखी है.
उनका कहना है, "कुंभ का सामाजिक सरोकार ज्यादा रहा है, ये साधारण मेला नहीं है. ऐसे मेले में जहाँ पग पग पर रचनाएँ और संस्कृतियाँ मिलती हों, किसी एक संस्था को एकाधिकार कैसे दिया जा सकता है. वैसे भी आज जहाँ हर नागरिक के पास प्रसारण के टूल हैं तो इसे लागू कर पाना भी संभव नहीं है."
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने पिछले मई महीने में नगर विकास को पत्र लिखकर निर्देश दिया था - "कुम्भ मेला 2012-13 में विज्ञापन के अधिकार की नीलामी करके एवं टेलीकास्ट राइट्स से शासन के लिए राजस्व प्राप्त किए जाए."
नगर विकास विभाग ने मुख्य सचिव का पत्र कुंभ मेला प्रशासन को भेज कर इस संबंध में 'सुस्पष्ट प्रस्ताव' मांगे थे कि, "विज्ञापन के अधिकार की नीलामी करके एवं टेलीकास्ट राइट्स से शासन के लिए किस प्रकार से राजस्व प्राप्त किया जा सकता है."
महाकुंभ मेला अगले वर्ष जनवरी में शुरू होकर मार्च तक चलेगा. अनुमान है कि देश विदेश से तीन चार करोड़ लोग इस मेले में शामिल होंगे. भारत सरकार इस मेले की व्यवस्था के लिए एक हजार करोड़ रूपए का अनुदान दे रही है और इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार के पास इस मेले के लिए संसाधनों की कोई कमी भी नही है.
हजारों साल पुराना पर्व
महाकुंभ मेला हिंदू समुदाय का हजारों साल पुराना पर्व है. देश के शंकराचार्य, साधू - संन्यासियों के अखाड़े, उनके गृहस्थ भक्त और अन्य धार्मिक, सामाजिक संगठन इसके मुख्य आयोजक होते हैं.
इस पर्व में बड़ी तादाद में नागरिक शामिल होतें है इसलिए सरकार की भूमिका केवल यातायात नियंत्रण, सुरक्षा, साफ़ सफाई एवं अन्य मूलभूत नागरिक सुविधाएँ देने तक सीमित होती है.
साधू – संन्यासी हमेशा से मेले में व्यावसायिक गतिविधियों का विरोध करते रहे हैं. वर्ष 2001 के कुंभ मेले के दौरान कुछ निजी होटलों को मेला क्षेत्र में ज़मीन देने का व्यापक विरोध हुआ था. यह मामला अदालत में गया और अंत में मेला प्रशासन को अपना निर्णय रद्द करना पड़ा.
कुंभ मेले में प्रसारण अधिकार का मामला लोगों की धार्मिक और अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार से जुड़ा है इसलिए इस पर और ज्यादा विवाद होने की संभावना है.
मुख्य सचिव ने महाकुंभ मेले की तैयारियों के संबंध में बृहस्पतिवार को एक बैठक बुलाई है. बैठक में इस प्रस्ताव पर भी चर्चा होनी है.
bbc hindi news
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